उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय की गुरु गोबिंद सिंह शोध पीठ द्वारा मंगलवार को राजभवन में वीरबाल दिवस पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में महामहिम राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल सेवानिवृत्ति गुरमीत सिंह ने काफ़ी टेबल बुक आरोही का विमोचन किया। आरोही में कुलपति प्रोफेसर दिनेशचंद्र शास्त्री के 1 वर्ष के कार्यकाल की विशिष्ट उपलब्धियां को संकलित किया गया है।
राज्यपाल श्री गुरमीत सिंह ने श्री गुरु गोबिंद सिंह शोध पीठ का गठन करने पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर दिनेश चंद्र शास्त्री को बधाई दी तथा साथ ही गुरु गोबिंद सिंह शोध पीठ के माध्यम से किये जा रहे सामाजिक कार्यों की सराहना की।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए महामहिम राज्यपाल गुरमीत सिंह ने कहा कि देश और धर्म की रक्षा के लिए गुरु गोबिंद सिंह के परिवार ने सर्वोच्च बलिदान दिया है। गुरु गोबिंद सिंह के साहबजादो के बलिदान को युगों – युगों तक भुलाया नहीं जा सकता ।उनकी शौर्य गाथा को हमें जन – जन तक पहुँचाने का बीड़ा उठाना होगा,अपने उद्बोधन को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि सिख धर्म ,राष्ट्र प्रेम की भावना को साथ में रखकर जीवन जीने की सभ्यता है।राज्यपाल ने बताया कि माननीय प्रधानमंत्री ने कहा है कि जय जवान ,जय किसान के साथ अब जय अनुसंधान को जोड़ने का यह समय है।हम सबके लिए जरूरी है कि वैश्विक स्तर पर हमें भारत में होने वाले अनुसंधानो को स्थापित करना है।कार्यक्रम को संबोधित करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर दिनेश चंद्र शास्त्री ने कहा कि उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय ,हरिद्वार संस्कृत का इकलौता विश्वविद्यालय है जिसमें गुरु गोबिंद सिंह शोध पीठ का गठन किया गया है। इसके अलावा विश्वविद्यालय में चार अन्य शोध पीठों का भी गठन किया गया है। साहबजादों बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह ने अपना सर्वोच्च बलिदान देकर धर्म और राष्ट्र की रक्षा की है। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय ने सिख धर्म एवं जननायक गुरु गोबिंद सिंह नामक एक महत्वपूर्ण ग्रंथ का आलेखन किया जा रहा है जिसका विमोचन बैसाखी पर्व पर माननीय राज्यपाल द्वारा किया जाना प्रस्तावित किया गया है। इस अवसर पर गुरु गोबिंद सिंह शोध पीट के समन्वयक डॉ. अजय परमार ने शोधपीठ के गठन एवं उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। मुख्य वक्ता के रूप में पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला के प्रो. दलजीत सिंह ने कहा कि इतिहास लेखन में हमें अब पश्चिम का मुँह नहीं देखना है। अब समय आ गया है कि हमें भारतीय इतिहास एवं संस्कृति के क्षेत्र में उन सभी अनछुए पहलुओं पर शोधपरक दृष्टि डालकर भारतीय इतिहास के लेखन को पुनर्स्थापित करना है ।हेमकुंड गुरुद्वारा प्रबंध समिति के अध्यक्ष सरदार नरेंद्र जीत बिंद्रा ने तत्कालीन परिस्थितियों पर सारगर्भित ढंग से विचार रखे।कार्यक्रम का शानदार संचालन डॉक्टर विनय कुमार सेठी ने किया। कार्यक्रम में उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलसचिव गिरीश कुमार अवस्थी, डॉक्टर श्वेता अवस्थी, डॉक्टर अरविंद नारायण मिश्रा, डॉक्टर प्रकाश पंत, डॉक्टर उमेश शुक्ला, डॉक्टर बिंदुमती द्विवेदी, श्रीमती मीनाक्षी रावत, सुशील चमोली, सुभाष पोखरियाल, विनोद, सूरज उदयवीर , चंदन, जय , अरुण आदि मौजूद थे।