उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के सांस्कृतिक समिति द्वारा भारतीय शास्त्रीय नृत्य के महत्त्व पर विशिष्ट व्याख्यान का वेद विभाग में आयोजन किया गया जिसका शुभारंभ डॉ बिंदुमती द्विवेदी जी के स्वागत भाषण के साथ हुआ।
नाट्यशास्त्र के महत्व पर बोलते हुए मुख्य अतिथि विश्वविख्यात शास्त्रीयनृत्य विशेषज्ञ डॉ सरस्वती राजथेस जी ने बताया कि भरतमुनि के नाट्यशास्त्र का महाभारत, श्रीमद भागवत महापुराण और रामायण में विशिष्ट महत्व देखने को मिलता है वह चाहे कालिय नाग के फनों पर किया गया नृत्य हो अथवा ब्रज की गोपियों के साथ किया गया श्री कृष्ण जी का महारास सर्वत्र नाट्यशास्त्र की विशेषता देखते ही बनती है। इस प्रकार ब्रज से पूरे भारतवर्ष में विस्तारित यह शास्त्रीय नृत्य स्थान विशेष की भाषा और पोशाक के साथ अलग अलग नामों से जाना जाता है। भरतनाट्य, कत्थक, कुचुपुड़ी, मोहिनीअट्टम, ओडिशी, मणिपुरी आदि शास्त्रीय नृत्य के ही अलग- अलग रूप हैं।
कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ अरविंद नारायण मिश्र जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि नृत्य मानव जीवन का एक अभिन्न अंग है जिसका शास्त्रीय मर्यादा के अनुसार जीवन में अनुसरण करना चाहिए एवं जनसामान्य को भारतीय शास्त्रीय नृत्य का भी ज्ञान होना चाहिए।
इसी क्रम में कार्यक्रम के संयोजक वेद विभाग प्रमुख डॉ अरुण मिश्रा जी ने मंच का संचालन करते हुए कहा कि नाट्यशास्त्र को पंचम वेद के रुप में जाना जाता है ।
कार्यक्रम की सह संयोजिका श्रीमती मीनाक्षी सिंह रावत जी ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि इस तरह के कार्यक्रमों से हमें अपनी सांस्कृतिक विरासतों से जुड़ने का और उन्हें जानने का अवसर प्राप्त होता है।
कार्यक्रम के शुभ अवसर पर डॉ सरस्वती राजथेस ने आठ प्रकार के शास्त्रीय नृत्यों पर अपनी प्रस्तुति देकर सभी को शास्त्रीय नृत्य कला से अवगत कराया।
इस अवसर पर संस्कृत भारती के प्रांत संगठन मंत्री गौरव शास्त्री, डॉ प्रकाश पंत, डा श्वेता अवस्थी,डॉ सुमन भट्ट, सुशील कुमार चमोली आदि अन्य आचार्यगण एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।