उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय में स्थापित हुयी शंकराचार्य शोधपीठ
आदि जगद्गुरु शंकराचार्य जन्मोत्सव के अवसर पर उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार में श्री शंकराचार्य शोधापीठ की स्थापना की गई। इस अवसर पर विश्वविद्यालय में आदि गुरु शंकराचार्य की सांस्कृतिक यात्रा विषय पर राष्ट्रीय ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसका शुभारंभ महामंडलेश्वर स्वामी हरि चेतनानंद महाराज, मुख्य वक्ता डॉ. ओम प्रकाश भट्ट, कुलपति प्रो. दिनेश चंद्र शास्त्री एवं कुलसचिव गिरीश कुमार अवस्थी ने किया।
इस अवसर पर अखिल भारतवर्षीय धर्मसंघ, उत्तराखंड शाखा के प्रदेश अध्यक्ष डा. ओम प्रकाश भट्ट ने शंकराचार्य जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए एवं उनकी सांस्कृतिक यात्रा को रेखांकित करते हुए कहा कि आदि शंकराचार्य अद्वैत वेदांत के प्रणेता, संस्कृत के विद्वान, उपनिषदों के व्याख्याता और सनातन धर्म के सुधारक थे. उन्होंने सनातन परंपरा को पूरे देश में फैलाने के लिए भारत के चारों कोनों में चार मठों की स्थापना की. उन्होंने कहा कि भारत वर्ष में माना जाता है कि आदि शंकराचार्य भगवान शिव के अवतार थे. उनके विचारोपदेश आत्मा और परमात्मा की एकरूपता पर आधारित हैं. कहा कि उन्होंने ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, मांडूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, बृहदारण्यक और छान्दोग्योपनिषद् पर भाष्य लिखकर सनातन धर्म में फैली भ्रांतियों को दूर किया.
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर दिनेश चंद्र शास्त्री ने कहा कि आदिगुरू शंकराचार्य जी ने भारत में एकता एवं अखंडता को स्थापित करने के लिए चार मठों में क्रमशः चारों वेदों की स्थापना की जिससे भारत वर्ष में सनातन धर्म की रक्षा के साथ वेदों का प्रचार प्रसार हो सके. कहा कि भगवान शंकराचार्य का आविर्भाव ऐसे समय हुआ जब भारतवर्ष में सनातन धर्म विलुप्त हो रहा था, उन्होंने विभिन्न शास्त्रों कि रचना करके तथा अन्य धर्मों के आचार्यों को शास्त्रार्थ में पराजित करके सनातन धर्म कि पुनर्स्थापना की. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय में शंकराचार्य शोधपीठ कि स्थापना करने का मुख्य उद्देश्य यह है कि आदि गुरु शंकराचार्य की परम्परा का प्रचार प्रसार किया जा सके. कहा कि यह शोधपीठ भविष्य में अपने प्रकल्पों द्वारा घर-घर में शंकराचार्य जी का संदेश प्रसारित करेगा एवं भारत कि एकता और अखंडता के लिए कार्य करेगा.
कार्यक्रम के अध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी हरि चेतनानंद जी महाराज ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत की सांस्कृतिक विरासत एवं सभ्यता को बचाने के लिए भगवत्पाद शंकराचार्य के उपदेशों पर चलना बहुत जरूरी है. उन्होंने कहा की आदिगुरू शंकराचार्य के नाम पर शोधपीठ का गठन कर उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय ने महत्वपूर्ण कार्य किया है जिसका लाभ आने वाले समय में भारत की जनता को मिलेगा. कहा कि भगवान शंकराचार्य के दिखाये गए मार्ग पर चलकर ही सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करना चाहिए जिससे भारत वर्ष में सांस्कृतिक चेतना का अभ्युदय हो सके.
विश्वविद्यालय के कुलसचिव गिरीश कुमार अवस्थी ने उपस्थित अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय में स्थापित किये गए श्री शंकराचार्य शोधपीठ समय समय पर इस प्रकार कि संगोष्ठियों के माध्यम से उनके मत का प्रचार प्रसार करता रहेगा.
कार्यक्रम में आये हुए अतिथियों का स्वागत मीनाक्षी सिंह रावत ने किया. कार्यक्रम का सञ्चालन डा. सुमन प्रसाद भट्ट ने किया. इस अवसर पर संयोजक सुशील कुमार चमोली, डा. लक्ष्मी नारायण जोशी, डा. उमेश कुमार शुक्ल, डा. अरुण कुमार मिश्र, डा. कंचन तिवारी, डा. प्रदीप सेमवाल, डा. विनय कुमार सेठी, डा. श्वेता अवस्थी, डा. कामाख्या कुमार, डा. परविंदर कुमार, डा. रुपेश शर्मा, क्रीड़ा विभाग के प्रभारी चंद्र शेखर,विद्या सागर जोशी आदि उपस्थित रहे.
द्वारा ऑनलाइन पटल पर पधारे सभी महानुभावों का हृदय की गहराइयों से धन्यवाद ज्ञापन किया गया पुनः डॉ सुमन प्रसाद भट्ट जी के आग्रह पर सभी महानुभावों ने शांति मंत्र गाकर इस कार्यक्रम को सुसंपन्न करवाया ।